राजस्थान दिवस सांझा संग्रह

राजस्थान दिवस सांझा संग्रह
संपादक:कमल कालु दाहिया
प्रकाशक:शैलेन्द्र सिंह शैली
प्रकाशन:उदय कमल साहित्य संगम
शेरगढ़,जोधपुर, राजस्थान
♂ राजस्थान दिवस सांझा संग्रह ♂

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1. प्रभु गरासिया ‘आर्या’

नमन मंच
उदय कमल साहित्य संगम
शीर्षक – मेरा राजस्थान निराला


मेरे हिवड़े का है कलेजा, मेरा प्यारा राजस्थान।
पाकर यहाँ की पुण्य धरा को, करूँ महिमा गान।
पूर्व जन्म के पुण्य कर्म से, हम जन्में राजस्थान।
आओ मिलकर करें कुछ ऐसा, बढ़ाए इसका मान।

मेरे हिवड़े……………………………..राजस्थान। मेरा राजस्थान खदान है, हीरे जैसा निकला प्रताप। अस्सी घाव एक नैन हाथ गवाया, मेवाड़ महाराणा थे संग्राम। वीर कल्ला चार हाथ बनाया, नगरी थी चित्तौड़ धाम।

मेरे हिवड़े……………………………….राजस्थान।

राजस्थान की नारी थी, पर अबला बनकर नहीं रही।
सांगा पूत बचाने हेतु, उदयकक्ष बलिवेदी बनाई थी।
आन,बान सतीत्व रक्षा में, जौहर ज्वाला जलाई थी।
पन्ना, पद्मिनी रानी और कर्मावती की कहानी थी।

मेरे हिवड़े……………………………….राजस्थान पश्चिम के रेतीले टीले, कहावे धरती धोरा री। जाबालि, सिवाणा, जैसलमेर, किलों से शोभा बढ़ रही। गंगा सिंह के किए उपकार से, मरु गंगा जल बहा रही।

मेरे हिवड़े………………………………..राजस्थान।

मारवाड़ का अमृत सरोवर, मारवाड़ की प्यास बुझावे है।
राणा प्रताप है सागर जो, सिंचाई और विद्युत बनावे है।
माही साग र बजाज भी, परहित धर्म निभावे है।
बीसलदेव चौहान का , बीसलपुर बांध नीर बहावे है।

मेरे हिवड़े……………………………………राजस्थान। राजस्थान की देवी रूपा सरिताएँ, चम्बल, बनास, माही और लूनी। अपना अमृत- सम जल बहाती। पिछोला, आनासाग र, नक्की, फतहसागर , पुष्कर और सांभर, सैलानियों को बहुत लुभाती।

मेरे हिवड़े……………………………….राजस्थान।

पूर्व पश्चिम में जल को बाँटती, अरावली बहुत निराली है।
गुरु शिखर,सेर,जरगा,अचल,रघुनाथ, जानी मानी चोटी है।
किलों और मंदिरों से सजी, अरावली की पहाड़ी हैं।
संकट काल में आश्रय स्थली, राणा की यहीं अरावली है।

मेरे हिवड़े………………………………..राजस्थान। भारत के पश्चिम का प्रहरी, राजस्थान सदा है रखवाला। राजस्थान का मनमोहक आकार, पतंगाकार - सा दिखाई देता। राज्यों में सबसे बड़े होने का, गौरव राजस्थान बढ़ाता।


मौलिक एवं स्वरचित रचना

प्रभु गरासिया ‘आर्या
भीमाणा, बाली, पाली, राजस्थान

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2. रामबाबू शर्मा, राजस्थानी

             
                  *हाइकु*
        राजस्थान दिवस
       
                      1
                 मनभावन
            राजस्थान हमारा
               वीरा री धरा ।
      
                     
                      2
              वो हल्दी घाटी
            हमें याद दिलाती
             प्राणों की बाजी ।
     
                   
                      3
                कैर सांगरी
             लगती मनभावन
                वो तरकारी ।
      

                       4
                 हवामहल
            गुलाबी नगरी की
              शान निराली ।
      
  
                      5
               पन्ना सी माता
           वो ही भाग्य विधाता
              स्वामी की रक्षा ।
         
                     
                       6
                रेतिले  टीले
             कण-कण चंदन
              बलिदानी वंदन ।
      

                       7
               तीज त्यौहार
            सावन की बोछार
             झूलों की मस्ती ।
      

                     8
              चेतक घोड़ा
          हमें याद दिलाता
           भाला की गाथा ।
    
                     
                    9
              जौहर रानी
          शेरनी थी क्षत्राणी
           थी स्वाभिमानी ।
    

                   10
              मान बढाती
           दुनियां में सिरमौर
             छाछ राबड़ी ।
     
     ©®
              रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

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3. प्रीति चौधरी “मनोरमा”

राजस्थान दिवस

लोकजीवन की बहुरंगी
शोभा से युक्त है राजस्थान,
यह वीरों की भूमि है पावन,
कायरता से मुक्त है राजस्थान।

राजस्थान की चंदन-माटी में
जन्मे हैं व्यक्तित्व महान,
विस्मृत नहीं कर सकता जग
यहाँ का शौर्य और बलिदान।

उदयपुर कहलाता है
राजस्थान का कश्मीर,
राजस्थान के युवा हैं
पराक्रमी और वीर।

राजस्थान में होता है अतिथि-
सत्कार परम्परा का पालन,
दृढ़ इच्छाशक्ति से यहाँ,
हुआ सद्कर्मों का संचालन।

राजस्थान की राधा
कहलाईं हैं मीराबाई,
वीरांगनाओं ने यहाँ
स्वतंत्रता अलख जलाई।

तीस मार्च को हम सब,
राजस्थान दिवस मनाते हैं,
वीरगाथाओं की भूमि पर
असँख्य श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं।

प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश

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4. कमल कालु दहिया

बलिदाणी चेतक

झुक गई मेवाड़ी पाग, झुक्यो है केसरियो बाणो,
जके री मुगल्लों में पड़े धाक, झुक्यो है वो राणो।। [1]

हळदघाट रे समर माही, चेतक पैर कटायो हो,
स्वामी भक्ति में नाडियो को कुद दिखायो हो,
राणा ज्यों चेतक प्रजा के मनड़ो भायो हो,
ओ चेतक रणबांकुर आज क्यों मौत सुआयो हो।।

बल्लिदाणी चेतक ने आज सगळा शीश नवाणो,
झुक गई मेवाड़ी पाग, झुक्यो है केसरियो बाणो।। [2]

काळा – काळा बादल्लयां वेग भूल गया,
देख चेतक को सोत, सूरा अपणो तेज भूल गया,
हल्द – घाट में मेवाड़ी सरदार आवेग भूल गया,
राणा रो टुट्यो हर्द, समर सेज भूल गया।।

हे! एकलिगंजी थे आज ओ केड़ो मौसम सुवाणो,
झुक गई मेवाड़ी पाग, झुक्यो है केसरियो बाणो।। [3]

लहू से रंगोड़ी हल्दघाट री जमी है,
हे! चेतक रण में सिर्फ थारी कमी है,
अइयाँ – कइयाँ सो गयो, इण इला में नमी है,
नैणा रे पाणी री अटे ज्यों नाडी जमी है।

म्हाने छोड़ मती जा, चेतक थाने मौत सू पासो आणो,
झुक गई मेवाड़ी पाग, झुक्यो है केसरियो बाणो।। [4]

तल्लवार – भाल्ले सम शक्ति को भान हो चेतक,
मेवाड़ी राणा री मुगल्लो में अभिमान हो चेतक,
चितौड़ भौम री आण – बाण – शाण हो चेतक ,
रजपुतानो रो कण कण बखाण हो चेतक।

कमल गावे लेखणी सु चेतक रो बलिदाण गाणो,
झुक गई मेवाड़ी पाग, झुक्यो है केसरियां बाणो।।

रचनाकार :- कमल कालु दहिया

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5. मीरा बाई राजस्थानी

राजस्थान स्थापना दिवस

सिंधारा

बागां मे फूल खिले
हरियाली चारों मेर दिखे
मोर पंख फैलाए नाच उठे।

दादा जी मेरे
बगिया मे एक झूला लगवा दो
धूप ना लगे चेहरे पर
झूला पेड़ पर बंधवा दो ।

री माई म्हारी
मेहंदी हाथा मे लगवा दो
तीज ह चैत का म्हाने मीठों भी खिलवा दो
मेरी सारी बहना न बुलवा दो
भाभियां और सखियां न भेलो आज करवा दो
मां आज मेरा सिंधारा घना करा दो ।

री दादी म्हारी
भुआ न बुलवा दो
बागां म हिंडोला सुन्दर एक घला दो
राधा रानी कृष्ण कन्हैया को सत्संग एक करा दो
दादी सिंधारा मेरा मनवा दो
दादी लाड म्हारा लडवा दो ।

री ताई सुन री
एक घाघरो सिलवा दो
जिसमे गोटो सोनो सो लगवा दो
तारा उसमे डलवा दो
थोड़ा मनुहार म्हारा करवा दो
ताई नखरा म्हारा पूरा करवा दो ।

ओ चाची म्हारी
एक बार तो आजा चाची
सिनेमा म्हाने थे दिखला जा।
चाची लाड म्हारा लड़वा जा।

ओ भाई म्हारा
सासरिया से बुलवानो को संदेशों एक भिजवा दो
बचपन मे थे घना लडा था म्यारे स अब
म्हारा कलेजे से लग जाओ
भाया म्हारो लाड थे लडा जाओ।

मीरा बाई
राजस्थानी

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6. कपीश माहेश्वरी

राजस्थानी माटी का कितना गौरव-गान लिखूं,
महाराणा प्रताप लिखूं या पृथ्वीराज महान लिखूं?

पन्ना का उपकार लिखूं या मीरा वाला प्यार लिखूं,
कर्मा की भक्ति या फ़िर रानी का इज़हार लिखूं,
हरे घास की रोटी या फ़िर मेवाड़ी दरबार लिखूं,
दिल्ली की हर हार लिखूं या सांगा की तलवार लिखूं?

त्याग का इतिहास लिखूं या भामाशाह का दान लिखूं
राजस्थानी माटी का कितना गौरव-गान लिखूं?

चित्तौड़ का दुर्ग लिखूं या विजय स्तंभ का नाम लिखूं,
पुष्कर तीर्थ, अजमेर शरीफ दोनों का पैगाम लिखूं
चम्बल का मुकाम लिखूं या साम्भर का दाम लिखूं,
जयमल-पत्ता वीर लिखूं या मारवाड़ी लाम लिखूं?

जैसलमेरी टीले या फ़िर आबू-पर्वत शान लिखूं,
राजस्थानी माटी का कितना गौरव-गान लिखूं?
~~कपीश माहेश्वरी

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7. डॉ अनुज कुमार चौहान “अनुज”

कविता

देश-प्रेम की जहाँ अनूठी,
परिपाटी अरमान है ।
मातृभूमि हित ही सर्वोपरि,
त्याग समर्पण जान है ।
प्यारा राजस्थान है ,
न्यारा राजस्थान है ।।
पदमावती राजमाताओं का,
जौहर अभिमान है ।
गोरा बादल हाड़ी रानी,
पन्ना का बलिदान है ।
प्यारा राजस्थान है ,
न्यारा राजस्थान है ।।
राणा का मेवाड़ अमर यह,
चेतक की पहिचान है।
शान अनौखी बच्चा-बच्चा ,
राग देश का ज्ञान है ।
प्यारा राजस्थान है ,
न्यारा राजस्थान है ।।
वन्दनीय नमनीय भूमि,
वीरों की शान जुबान है ।
कण-कण में जहाँ बसे भवानी ,
आशीषों की खान है ।
प्यारा राजस्थान है ,
न्यारा राजस्थान है ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान “अनुज”
अलीगढ़ ,उत्तर प्रदेश ।

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8. मोहन लाल माहेश्वरी

धन धन राजस्थान
लेख
दुनिया रो अजूबो है राजस्थान।
कुदरत रो अनमोल खजानो है राजस्थान।
इण भारत री सगली खासियतों मिले जिण मुलक रो नाँव है राजस्थान। अठे मारवाड़ रा सोनीला धोरा, शेखावाटी री रज, ढूंढाड़ी री मैहक, मेवाड़ रा तालर, हाड़ौती री नदियां, मेवात रा भाखर सगली खुबसूरतियों सूं भरियोडो मुलक।
इण रो जूनो नाँव-राजपूतानो।
रज रो पूत मतलब धरती रो बेटो। धरती रे लाल री धरा, मरूधरा। राजपूतों रे खून सूं सींच्योड़ी, मारवाड़ी सेठा रे दान सूं गुन्ज्योड़ी, मेवाडी मान सूं पुज्योड़ी, दूरगादास री तलवार सूं खण्क्योड़ी, मीरां रे भजना सूं सज्योड़ी, पदमणी रो जौहर अर भामाशाह रो दान कद अणजाणो है,कर्मा रे खीच अर पन्ना रे कोख सूं मान्योड़ी आ धरा सूरग सूं उँची मानीजे।
सगती,भगती मान मनवार, कुदरती खुबसूरती, मरजादां री भरमार, अन्न धन अर खनिजां सूं भरीयोड़ी आ धरती किण मुलक सूं कम है। भारत माता रे कालजे री कोर है राजस्थान।
अठे मारवाड़ मुलक जग जाणियो है। दुनिया री हर कूंट माथे मारवाड़ अर मारवाड़ी रो नाँव सूणीजे। अठे रा राणा परताप अर दूरगादस आखी धरती में गाईजे। हाडी राणी अर पन्नाधाय ने कुण नी जाणे। मीरा अर करमा जगत चावी है। बाबो रामदेव, हड़बूजी, पाबूजी, तेजाजी आखी धरती माथे पूजीजे । गुलाबी शैहर जैपर, झीलों री नगरी उदैपर, कोट कंगूरों रो शैहर जैसलमेर, सूरज रो नगर जोधपुर आदि जगत ठावा देखणा रे लायक है।
अठे कुदरत री ज्यू ई मिनखां में ई घणी भीन्नतावां है। पैरवास, बोलचाल,भायखा, रीति-रिवाज आखे मुलक में न्यारा-न्यारा है। अठे कैवे है-
“बारे कोसां बोली पलटे,वनफल पलटे पांका।
कोस-कोस में पाणी पलटे,लखण न पलटे लाखां।”
आज राजस्थान दिवस माथे इण धरती ने बारम्बार नमस्कार करुँ अर सिरजणहार ने अरदास करुँ कै मांखो जमारो पाछो मिले तो इणी धरती माथे पाछो आऊँ।
अठे रे मिनखां सूं वीणती करुँ कै वे इण धरती री मान मरजादा, बोली भायखा, रीति-रिवाज अर संस्कारों ने जीवता राखे, अपणे टाबरां ने इण धरती री सीख दे।
भारत अर राजस्थान रे राज सूं हाथ जोड़ अरज है कि राजस्थानी भायखा ने मान्यता देवे।
जै जै राजस्थान।
~मोहन लाल माहेश्वरी

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9. अरविन्द कालमा

शीर्षक:- मेरा रंगीला राजस्थान
विधा:- काव्य

पचरंगी लहरिया
साफा जहाँ की शान है
जहां जन्में वीर अगणित
ग्रंथों ने किया गुणगान है
है जो सारगर्भित
नयनाभिराम
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

गेंहू,बाजरा,मुंग,मोंठ
तरसते जिसको प्रदेश के होंठ
सर्व प्रचलित धान है
मन को मजीरे सा मोह लेता
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

दाल,बाटी,चूरमा,
नहीं स्वाद कभी जिसका थमा
नहीं ज़ुबान में ताकत वो
जो कर सके इसका व्याख्यान है
कण-कण माटी का पूजित जिसका
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

सेठिया,भाटी,बारहठ ने
काव्य में किया बखान है
प्रताप,मीरा,पन्ना ने
जहाँ दिया सर्वस्व बलिदान है
अभिमान जिसका करता भारत
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

बोली जिसकी राजस्थानी
जहां बसी मीरा दीवानी
पोकरण से सजा विज्ञान है
निस्वार्थ जहां की सेवा है
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

माटी जहां की
सोने सी चमके
खेत खलिहान
रस भर खनके
पधारो म्हारे देश जहां आह्वान है
निश्छल निर्मल
सुशोभित जो
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

मोह ममता का काम नहीं
दूध छाती का नाकाम नहीं
दुश्मन की गोली पर सीना ताने
सीमा पर तैनात जवान है
अभिलाषा जहां
मर मिट जाने की
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

कालीबाई जैसी गुरुभक्ति जहाँ
शीश काट जिसने दिया
हाड़ीरानी जैसा स्वाभिमान है
पदमिनी जैसा जहाँ बलिदान है
वह सिरमोर कोई और नहीं
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

चित्तौड़गढ़ और स्वर्णगिरी
ना जिससे कभी नजरें फिरी
माउंट आबू आब दिनकर सी
जयपुर गुलाबी शान है
जो धड़कन है
अविरल भारत की
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

नारी शिक्षा पर जोर जहां
ना कलंक माथे पर शोर जहां
ना टूटे जिसका गुरुर
ऐसी जो मजबूत चट्टान है
गर्व से झूमती नारी जहां
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

अरविंद बड़े भाग जो ये माटी पाई
चलना थाम बड़ों की परछाई
गिरने ना पाए कभी सम्मान हैं
जन-जन की सांसें जिसको सींचे
वो मेरा रंगीला
रसीला राजस्थान है।

अरविन्द कालमा
भादरुणा (साँचोर)
राजस्थान
©®

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10. आज़म नैय्यर

ग़ज़ल
राजस्थान
बाजरा सरसों चना उगता यहां
राजस्थानी है मौसम ऐसा यहां

ताप से उगती जिसकी मूंग है
रेत भी वो खेतों में रहता यहां

राजस्थानी दिल में भरती प्यार है
दाल मूटा ऐसा वो होता यहाँ

हर किसी की मन्नतें होती पूरी
देखिए अजमेर है ऐसा यहां

ख़ूबसूरती की है मिसालें जिसकी
राजस्थानी राज्य वो देखा यहां

हां क़िला मशहूर है जयपुर का ही
नाम हर कोई इसका लेता यहां

मोर नाचे है खिले गुल प्यार के
ऐसा आज़म शेरगढ़ लगता यहां

आज़म नैय्यर
सहारनपुर उत्तर प्रदेश

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11. मास्टर भूताराम जाखल

अनुपम राजस्थान

अतुलनीय कला की खान,
शान,आन,मान संग सम्मान,
भाषा बेजोड़ जो खींचे ध्यान,
तहजीब तजुर्बा मानवता महान,

संस्कृति,सभ्यता अनुपम,
रहन सहन है जग-उत्तम,
जलवायु का अजीब संगम,
नेतृत्व करें जग में हरदम।

मान-मनुहार की नर होड़ नहीं,
संगीत का यहाँ पर जोड़ नहीं,
पहनावा यहाँ जैसा बेजोड़ नहीं,
ऐतिहासिक विरासत का तोड़ नहीं,

कण कण में भरा है यहाँ त्याग,
नाज करे वीरता पे यहाँ हर भाग,
तीज त्यौहार पर्व प्राय: खेले जाग,
पहनकर युवक युवती सर पर पाग।

कर्तव्यनिष्ठा का यह परिचायक है,
भूगोल की यह धरा अधिनायक है,
प्रकृति उपासक पर्यावरण गायक है,
हर क्षेत्रों में भारत का अद्भुत नायक है।

कहे कलम से कलमकार भूताराम,
राजस्थान की धरा को कर-सलाम,
यूं ही फलता फूलता रहे अविराम,
ना ले कदापि मानवता संग विराम।।

स्वरचित व मौलिक रचना
रचनाकार :- मास्टर भूताराम जाखल,
सांचौर, जालौर (राजस्थान)

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12. शाह फ़ैसल

कविता
30/3/2021
कमल उदय साहित्य मंच

सूरमाओं का मान जहां
गुलाबी है हर शाम जहां
जोधपुर उदयपुर जैसे हैं
शहरों के बड़े नाम जहां

वीर हुए है यहां अनेक
महलो की शोभा को देख
वीरगति को प्राप्त हुऐ जो
वीरो का राजस्थान जहां

रेत जहां चांदी जैसी
हवा चले आंधी जैसी
प्यार मुहब्बत का प्रदेश
नफ़रत से अनजान जहां

शाह फ़ैसल
सहारनपुर उत्तर प्रदेश

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13. ज्योति बसंत पाराशर

मेरा राजस्थान

मेरा रंगीला राजस्थान~~~

पहनू पचरंगी चूनर लाल,
माथे सिंदूर….टीकी लाल,
लागे बोर सतरँगी विशाल,
नाक चँदा सी नथनी लाज ,
उस पर बेसर के मोती लाल।

मेरा रंगीला राजस्थान~~~

पहनू मैं बाजूबंद मोती लाल,
गले में पक्के मोती की माल,
पहनू जयपुरी नक्काशी हार,
हाथों में मीना का कँगना लाल,
पहनूँ साजन से अंगूठी.. लाल।

मेरा रंगीला राजस्थान~~~

साजन के पचरंगी पगड़ी माथ,
दिखता उसमें पचरंगी संसार,
मतवाले नयनों की दो-दो बात,
घूमर सा घूमे …….दोनों साथ,
एसो प्यारो … म्हारो राजस्थान।

मेरा रंगीला राजस्थान..~~~~

ज्योति बसंत पाराशर उज्जैन म.प्र.

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14. अस्मिता प्रखर

राजस्थान की माटी


कण-कण में गूंज उठा जय-जय राजस्थान।
वीरों की शौर्यता और साहस से भर उठा राजस्थान।
शत्-वंदन है वीर स्थली धरा राजस्थान।
पर्यटन स्थल, सांस्कृतिक विरासत, अतिथि सत्कार में हुआ मसहूर राजस्थान।
सोने सी धरती, चांदी सा परमाराम है राजस्थान।
रंग- रंगीली रसभयो हमारा प्यारा राजस्थान।
जयपुर, जोधपुर, उदयपुर और जैसलमेर की परिपाटी है राजस्थान।
एक से बढ़कर एक दर्शनीय स्थल का है पेशकश करता राजस्थान।
तरह-तरह के लिबासों को है प्रदान करता यह राजस्थान।
रंग- रंगीली बालकनियों का नजारा किलों और महलों की झलक दिखाता राजस्थान।
सुन्दर ऐतिहासिक स्मारकों, महलों और किलों की छबियों को है दर्शाता राजस्थान।
अपनी सुन्दरता से सबके मन को है आकर्षित करता राजस्थान।
विभिन्न झीलें, प्रसिद्ध मंदिर, पार्क और नेशनल पार्क में हैं सुशोभित राजस्थान।
राजस्थानी, हिंदी, मारवाड़ी है यहां की प्रमुख भाषाएं।
पंजाबी, उर्दू, सिंधी, संस्कृत और गुजराती हैं इनकी अतिरिक्त बोलचाल की भाषाएं।
कई समाज के हैं लोग यहां पर रहते इसलिए
इनका पोशाक- पहनावा भी है अलग-अलग।
इनकी वेशभूषाएं भी इनकी संस्कृतियों में हैं बहुत महत्व रखतीं।
घाघरा, कुर्ती है यहां की स्त्रियों का साज- श्रृंगार।
धोती, कुर्ती और पैंट हैं पहनते पुरुष यहां के।
शाकाहारी जैसे स्वदिष्ट ब्यंजन का है पहचान यहां।
दाल- बाटी और चूरमा है इनका प्राचीनतम प्रसिद्ध ब्यंजन।
गट्टे की खिचड़ी, लाल मांस, सफेद मांस, शाही गट्टे, कचौड़ी, मिर्ची बड़ा, घेवर और केर संगरी है इनके अतिरिक्त ब्यंजन।
विभिन्न पर्यटक स्थलों के हथकरघा वस्तुओं और शिल्पों का है विकसित राजस्थान।
कला और संस्कृति की सच्ची झलक पेश करता है राजस्थान।
चोकी ढाणी, जैसलमेर में सफारी शिविर, उदयपुर के बागौर की घाटी इत्यादि विरासतों की विराजकता है राजस्थान।
वीर योद्धाओं की पावन – विराट भूमि है राजस्थान।
जो वीर महाराणा प्रताप की जन्म स्थली है राजस्थान।
वीरता और दृढ़ता के लिए है अमर उनका इतिहास।
मुगल सम्राटों की अधीनता नहीं किये वह कभी स्वीकार।
संघर्षों के बल पर दी मात मुगलों को।
जो एक जीवित कहानी बन गए इस धरा पर।
हरे घासों की रोटी थी जिसने खाई।
जिनका घोड़ा चेतक हो गया अमर बलिदानी।
लिख गये नाम अपना स्वर्णिम अक्षरों में ।
जो राजस्थान की खूबसूरत सी कहानी हो गये।
पन्ना धाय की भी थी जन्म स्थली, मीरा का भी है प्यार भरा इस राजस्थानी माटी में।


अस्मिता प्रखर
प्रयागराज, उत्तर- प्रदेश
स्वरचित विधा-कविता

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15. शाहाना परवीन

“राजस्थान दिवस….”

“भारत का सुंदर राज्य “राजस्थान” कहलाता है,
राजस्थान दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है।

अनुपम संस्कृति और सुंदर स्थान है राजस्थान,
राजस्थान के शौर्य और साहस की गाथा संसार दोहराता है।”

राजस्थान दिवस के विषय मे बात करने से पहले जानते हैं कि “राजस्थान” शब्द का अर्थ क्या है?

“राजस्थान” शब्द का अर्थ:-

राजस्थान शब्द का अर्थ है- ‘राजाओं का स्थान’
राजाओं का स्थान अर्थात वह स्थान जहाँ अनेको राजा आकर बसे हैं । यहाँ की धरती पर अनेको राजा महाराजाओं ने राज किया है। गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि के द्वारा राज किये जाने के कारण इसका नाम राजस्थान पड़ा।

राजस्थान दिवस:-

राजस्थान दिवस या फिर राजस्थान स्थापना दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है।
30 मार्च 1949 में जोधपुर, जयपुर,  जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत की आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में आपस मे ही स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, जबकि उस समय राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी।
केवल एक रियासत अजमेर मेरवाड़ा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था।
जब भारत स्वतंत्र होता तो यह रियायत सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का एकीकरण कर ‘राजस्थान’ नामक प्रांत बनाया जाना था। जो अपने आप में काफी कठिन था। जहाँ देखो वहीं सबको सत्ता का लालच घेरे खड़ा था। देशी रियासतों के शासको की मांग थी कि वे सालों से वे खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका अनुभव भी है, इस कारण उनकी रियासत को ‘स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे दिया जाए।
अथक प्रयासो से 18 मार्च 1948 को राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई और कुल सात चरणों में 1 नवंबर 1956 को जाकर पूरी हुई। इसमे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की रही।
इनके परिश्रम व सूझबूझ से ही राजस्थान के
वर्तमान स्वरूप का निर्माण हो सका।

सुंदर व प्रमुख राज्य:-

राजस्थान हमेशा ही से भारत के लिए प्रमुख राज्य रहा है। यहाँ अनेको वीर व महापुरूषो ने जनम लेकर राजस्थान की धरती को पावन किया है। राजस्थान शौर्य, साहस, शक्ति, बुद्धिमानी का दूसरा नाम है। यहां की धरती रणबांकुरों और वीरांगनाओं की धरती है। राजस्थान दिवस पर सभी प्रदेशवासियो द्वारा अपने राज्य की सुख ,शांति, स्मृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है। कई महान वीरो की गाथा राजस्थान को वीरो की भूमि कहे जाने को प्रेरित करती है। यहाल के सभी शहर बहुत सुंदर हैं। इनकी सुंदरता को देखने दूर दूर से पर्यटक आते हैं। 30 मार्च को राजस्थान दिवस पर स्कूलो , पाठशालाओं मे तरह तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बच्चों व बड़ो को अपनी संस्कृति व महान वीरो की गाथाएँ, गीत आदि सुनाए जाते हैं।
राजस्थान की राजधानी जयपुर को छोटी मुंबई भी कहा जाता है। जोधपुर के किलो की बात करें तो आज भी उनकी सुंदरता वैसी की वैसी ही है जैसी सदियो साल पहले थी। इन किलो व यहाँ की दीवारो पर राजस्थान की पुरानी संस्कृति व कला देखने को मिलती है।

निष्कर्ष:-

कहने को बहुत कुछ है….
कैसे करूँ बयां शब्दों में….
राजस्थान की संस्कृति और कला
सदैव रहेगी जवां…
अनेको राजाओ की धरती है यह….
बहुत सुंदर है स्थान…..
इसलिए कहलाता “राजस्थान”।

अंत मे केवल इतना ही कहना चाहूगीं कि किसी भी संस्कृति को अगर करीब से देखना या जानना है तो उसके इतिहास को पढ़कर देखीये। परत दर परत सबकुछ हमारी आँखो के सामने होगा।
सभी को राजस्थान दिवस की हार्दिक बधाई व ढेरों शुभकामनाएं..।।.

शाहाना परवीन…
पटियाला पंजाब

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16.सुरेश कुमार सुलोदिया

धरती राजस्थान की
त्याग प्रेम बलिदान से अनोखी पहचान की ।
रणबांकुरे पैदा करती धरती राजस्थान की

राजस्थान मे राणा की तलवार दिखाई देती है
वीरो के साहस की खुब ललकार सुनाई देती है
पधारो महारे देश इज्जत करते है मेहमान की

मिठी बोली धनी बात वक्त पर साथ निभाते है
घुंमर लोकगीतो से जन जीवन को रिझाते है
रणभेरी बजते ही लगाते है बाजी जान की

गोरखटिला गुगाजी पूजे सालासर हनुमान की
लोहागर स्नान होता खाटू मे पूजा शयाम की
स्थापना दिवस मुबारक बोलो जय भगवान की

होली की धमाल हो चाहे या पर्व हो गणगौर का
रंगीला राजस्थान साक्षी रहा शौर्य के पुरजोर का
नमम राजस्थान तुम्हे शान हो हिन्दुस्तान की।
रणबांकुरे पैदा करती धरती राजस्थान की ।। *सुरेश कुमार सुलोदिया भिल्ला भिवानी हरियाणा*

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17. गोवर्धन लाल बघेल

धन्य यहां की मिट्टी***


भारत के इतिहास में
राजस्थान का नाम।
धन्य यहां की मिट्टी को
करू सौ बार प्रणाम।।
उदयसिह के पन्ना धाय का
अद्भुत त्याग कहानी।
राजस्थान में गुंज रहा है
जन जन की जुबानी।।
वीर प्रताप की कथा सुनकर
लोग विस्मित हो जाए।
थरथर कांपे शत्रुसेना
प्राण बचा भाग जाए।।
लोक संस्कृती झाकी सुंदर
सबके मन को भाए।
मनमोहक नृत्य झुमर
मधुर कंठ गीत गाए।।
भक्तो के कानो में गुंजी
मीरा की ईकतारा।
राजपाठ छोड़ जोगन बन गई
जाने सब संसारा।।
और क्या महिमा मै गाऊ
प्यारा राजस्थान का।
आन बान और शान हमारी
मेरा हिन्दुस्तान का।।

स्वरचित
गोवर्धन लाल बघेल
टेढी़नारा जिला महासमुंद
छत्तीसगढ़

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18. आशा झा सखी

प्यारा शुभ्ररक

राजस्थानी माटी में शौर्य,पराक्रम का
जज्बा कूट-कूट कर भरा है
शान सिर्फ राणा ही नहीं,इतिहास चेतकों, शुभ्ररकों से भरा पड़ा है
सुनी है सबने चेतक की वीर गाथा
आओ सुनाऊँ स्वामिभक्ति की पराकाष्ठा
उदयगढ़ के राणा कर्ण सिंह
शुभ्ररक उनको प्राण से प्यारा था
ईरानी मूल का घोटक, धवल
श्वेतवर्णी नयनों का तारा था
चाल थी ऐसी उसकी मानो
बातें हवा से करता था
बिना कहे ही राणा के
हर इशारे वो समझता था
काल हुआ विपरीत
मातृभूमि पर विपदा आयी
उदयगढ़ की धरती पर
ऐबक ने की चढ़ाई
हुआ भयंकर समर,
राजपूत प्राणों पर खेले
दस-दस मुगलों पर भारी
एक-एक राजपूत अकेले
हुआ दुर्भाग्य प्रबल,
शत्रु हुए रण पर भारी
बना लिए राणा ,हमारे युद्ध के बंदी
पड़ी नजर जो शुभ्ररक पर
लोभवश लाहौर ले आया
हुआ मुदित उस पर,जो
कपट से हाथ फिराया
देख पराया स्पर्श, शुभ्ररक का
ह्रदय विदीर्ण हो गया
पैर उठाकर मारी दुलत्ती
ऐबक भूमि पर क्षीण हो गया
भर उठा अपमान से ऐबक
जो कुछ करने की मानी
खेल-खेल में राणा को
जान से मारने की ठानी
बुला लिया प्रांगण में,खेल एक खेलेंगे
काटकर सिर तेरा,हम प्रतिशोध लेंगे
देखकर बंदी राणा को
शुभ्ररक जार-जार रोया
देखकर स्वामी की दशा
धैर्य एक पल न खोया
ठाना मन में लिया फैसला
फिर देखा राणा की ओर
राणा ने सुन लिया मौन को
दिया आश्वासन कठोर
हे स्वामीभक्त,हे परमवीर
तुम दुश्मन को दो ललकार
बस तुम आगे बढ़ो वीर
मैं भी हूँ यहाँ तैयार
हुआ अचानक वार
ऐबक भूमि पर पड़ा था
ऐबक की गर्दन पर
शुभ्ररक अड़ा खड़ा था
मार-मार दुलत्ती,
प्राण उसके हर लिया
पल भर में प्रतिशोध,
शुभ्ररक ने ले लिया
किया सवार राणा को
शुभ्ररक दौड़ पड़ा था
सरपट भागा वीर
एक पल नहीं रुका था
लाहौर से जो चला
सीधा उदयगढ़ महल रुका था
एक पल को भी न
उसने आराम किया था
उतरे महल जो राणा
शुभ्ररक खूब दुलारे
पर हाय रे! शुभ्ररक
स्वामीनिष्ठा में तूने प्राण ही हारे
हुआ मान तुझ पर
दिया मान- सम्मान,
अमर हो गया शुभ्ररक देकर अपनी जान
यही है गाथा मातृभूमि पर
मरने वालों की
तज कर अपने प्राण
मातृभूमि बचाने वालों की।।

राजस्थान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। ऐसी वीर भूमि को मेरा शत -शत नमन, अभिनंदन।

आशा झा सखी

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19. प्रो. डॉ शरत नारायण खरे

गीत

महाराणा प्रताप का शौर्य

था वीरों का वीर निराला,वह राणा मतवाला था
जिसका साहस,शौर्य प्रखर था,रिपुसंहारक भाला था
उस चित्तौड़ी सेनानी की,सारे ही जय बोलो
बंद पड़े जो इतिहासों में,उन पन्नों को खोलो।

राजपुताना की माटी ने,बलिदानों को सींचा
बैरी का कर काट दिया यदि नारी-आँचल खींचा
हल्दी घाटी की माटी ने,जय का घोष निभाया
मुग़लों को चटवाई मिट्टी,जय-परचम फहराया।

उदय सिंह के बेटे राणा,थे साहस-अवतार 
पुण्य धरा मेवाड़ में जन्मे,शौर्य भरी तलवार
राजपूत की शान के वाहक,गौरव के संरक्षक 
कालों के जो महाकाल थे,रिपु को विषधर तक्षक ।

राजपूत कुल जब अकुलाकर,अकबर से थर्राया
हर कुनबे ने उसके आगे,था निज माथ झुकाया
वीर बाँकुरे महाराणा ने तब,निज मान बचाया
लाज बचाने पुण्य धरा की,भाला ले जब धाया।

धरती माँ का कर्ज़ चुकाया,बना वीर सेनानी
मातु भवानी के आशीषों,से रोशन बलिदानी
थर्रा उठा मानसिंह भय से,अकबर भी घबराया
चेतक पर जब बैठ समर में ,महावीर था आया।

हल्दी घाटी की ज्वालाएँ,सच में बहुत प्रबल थीं
भीलों की सेनाएँ ही तो,राणा का सम्बल थीं
नहीं झुका राणा का सिर पर भूखा रहना भाया
राजपूत की शान देखकर,पर्वत भी हर्षाया।

जंगल रहकर,घास-चपाती खाना भला लगा था
महाराणा में अतुलित साहस,स्व-अभिमान जगा था
भामाशाही योगदान से,नया तेज पाया था
छोटी सेना,ताप प्रखर पर,भीतर फिर आया था।

चेतक ने भी अतुल पराक्रम,उस क्षण दिखलाया था
पर वह निज कर्तव्य निभाकर,स्वर्गलोक धाया था
किंचित भी राणा प्रताप पल भर नहिं घबराए थे
व्यापक सेना थी दुश्मन की ,पर गति से धाए थे।

हल्दी घाटी समर कह रहा,ऐसा वीर न दूजा
जिसको हमने हर युग में ही,श्रद्धा से है पूजा
शौर्य,तेज और बलिदानों की,जो है जीवित गाथा
आदर से मस्तक झुक जाता,जब भी विवरण आता।

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One thought on “राजस्थान दिवस सांझा संग्रह

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